अक्सर बुजुर्ग लोग लाचार भी हो जाते हैं। उनके परिजनों का कोई ग़लत इरादा नही होता पर अनजाने में कुछ छोटी छोटी समस्याओं मे वो घिर जाते हैं।
जैसे अपना मोबाईल फोन न होना, यह सबसे आम समस्या मैंने छोटे से समय में चिन्हित करी है। किसी भी बुजुर्ग के पास अपना फोन नही है, वो परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर रहते हैं कि उनके पास समय हो तो किसी क़रीबी से कब बात करवा पायेगा।
वो करीबी भी दूसरे छोर पर उसी तरह से किसी और पर आश्रित होता है, कि अंततः दोनों बुजुर्ग भाई या बहन या अन्य रिश्तेदार बात कर पायें।
जब तक वह बात करते हैं, फोन का ओनर वही खड़ा रहेगा, ताकि जल्दी से बात खत्म हो और फोन को काटें, फोन कहीं हाथ से न गिर जाये वगैरह।
सोचिये, अगर आप ऐसी स्थिति में हों तो कैसा लगेगा।
अकेलापन बुढ़ापे को और बूढ़ा कर देता है। घरों में बच्चे पढ़ रहे हैं,ट्यूशन मास्टर आये हैं इसलिए बूढ़े चुपचाप कोने में बैठें और राम का नाम लें मन ही मन। शाम को पार्क में जाकर बैठे तो कौन गेट दरवाज़ा खोलने आयेगा, इस डर से घर से बाहर न निकले। सुबह सैर करने निकले और कुछ हो न जाये, इस डर से सुबह उठकर खटिया पर बैठकर राम का नाम लें।
यह हालत उन सक्षम आत्मविश्वासी बुजुर्गों का हो जाता है जो जीवन भर अपनी शर्तों पर जीवन जिये थे। बैंक में काम हो तो कोई लेकर जायेगा, तभी होगा। आँख का ऑपरेशन, सुनाई कम देना, घुटने में तकलीफ़ और कुछ नही तो मरी खाँसी को दबा कर खाँसना पड़ता है। कौन लेकर जायेगा डाक्टर के पास, पूरा दिन बर्बाद कौन करेगा। सब बिजी हैं, दवा मंगाने में हिचक होती है, कैसे बच्चों को बोलें कि बेटा कल लास्ट गोली है। नियमित हेल्थ चेक अप से वे आश्वस्त रहेंगे कि उनका स्वास्थ्य ठीक है।
परिवार ने अभी वो दशा न सोची है न समझी है, जरा सा अंदेशा होते ही वे कोताही नही करेंगे, इस बात का यकीन है लेकिन व्यस्त जीवनशैली में समय निकालना मुश्किल हो जाता है।
बस एक छोटी सी आदत डालनी होती है नियमित संवाद की।
थोड़ी देर पास बैठो, हाथ पकड़ो और पूछो, आज आपके लिये क्या लेकर आऊँ। फिर याद से उस चीज़ को बिना भूले लेकर आयें, यह भी जरूरी है।
अगर आपके घर में बुजुर्ग है तो कल से यह शुरू कर दें।
एक नया मोबाइल फोन उनको दें, जो सदैव उनके पास रहे। उनका अपना नंबर, जो वो अपने हमउम्र से शेयर करके बात कर सकें। थोड़ी सब्र से सिखा दें उपयोग करना।
काॅलोनी के बुजुर्ग लोग का अपना गेट- टुगैदर हर माह या पंद्रह दिन में करायें, ताकि वे जीवन की संध्या खुशी में बितायें। वो सब देखते सुनते समझते हैं, बस चुप रहना सीखकर शांत बैठे हैं। इनके दिल में कभी देवानन्द था, आशा पारिख से कम नहीं थीं आपकी माँ की खूबसूरती। इनका जमाना बीतने न दें , बची हुई जिंदगी सजा नही है।
गाड़ी में बिठाकर लांग ड्राईव वो भी पसंद करेंगे, बस धीरे चलायें कार।
कभी कभार उनके हमउम्र रिश्तेदार को बुलाकर दिनभर साथ रहने दें। उनकी अपनी यादें और बातें हैं।
हो सके तो उनके जन्मदिन को यादगार बनायें।
उनके पहनावे बोलचाल पर फ़ख्र करें, बुजुर्ग ऐसे ही अच्छे लगते हैं। अपने बच्चों को महसूस करने दें कि वो भी ऐसे ही आपका ध्यान रखें, जब आपका समय आये।
🙏🙏🙏🙏