दर्द और प्रशामक स्थिति का गहरा रिश्ता है। यह शरीर नर्वस के जाल में जकड़ा हुआ है, कुछ रस्सीनुमा और बाकी अलग अलग मोटाई के तार। किसी बिजली वाले के गोदाम में जाकर अस्त व्यस्त पड़े तार के बंडल देखियेगा, बस वैसे ही हर शरीर में तार का गोदाम स्थापित करा है प्रभु नें।
आप गर्म तवे से दूर रहोगे, पहली घूँट चाय की धीरे से छोटी सी लोगे, चाकू ब्लेड ध्यान से पकड़ोगे, हर नुकसान वाली वस्तु से दूर रहोगे, यह कुदरत का कमाल है।
कुदरत नें अपना काम सुचारू करा है, जाने क्यों यह धारणा है कि नवजात शिशु में नर्वस सिस्टम पूरी तरह बना नही होता है, उसकी नर्वस् पर माईलीन की परत पूरी तैयार होने में समय लगता है यह धारणा है और वो जीवन के प्रथम चरण में धीरे धीरे विकसित होता है।
वैज्ञानिक बिना तर्क के निष्कर्ष पर नही पहुँचते, उनकी रिसर्च महीन होती है और उस प्रक्रिया पर सवाल नही उठा सकते। जिन डाक्टरों का संपर्क नवजात, शिशु और बालक जन से होता है ,वे बेहतर बता पायेंगे। मैंनें चिंता और व्यथा की लकीरें पैदा हुए बच्चों के मुख पर देखी है, जो किसी कारणवश अपनी माँ के समीप नही रखे जाते हैं।
नर्वस् के मकड़जाल को समझने की कोशिश करना बेकार है। मेडिकल की किताब पढ़ो तो लगता है किसी गपोड़ी ने लिखी है। शारीरिक संरचना, इन तारों का गुथ्म गुथ्था, लेकिन सुनियोजित ताल मेल हैरान करने वाला विषय है।
नर्वस् हैं, तो नर्वस् की बिमारियों का जत्था भी है।
इसे आम भाषा में नसों का विकार बोलते हैं हालांकि वास्तव में धमनियों को नस कहते हैं।यह भ्रम फैला हुआ है कि नस दब गई ,जबकि नस वो है जिनमें रक्त संचार होता है। अगर गलत लिखा हो तो मुझे इंगित कर दीजियेगा। इसके दो फायदे होंगे। एक तो मेरा ज्ञानवर्धन होगा और पता रहेगा कि यहाँ तक किसी ने पढ़ा भी है।
यह तो रही मोटी मोटी बात। मानसिक संवेदना को उंगली या पाइंटर से ठोक कर उसका स्थान बताना मुश्किल है। हमारे भीतर संवेदना नही , तो हमारा मानव जीवन व्यर्थ है। दूसरे के दुख को समझना सिखाया नही जाता। कोई तकलीफ बताये तो हम उससे अनायास दूरी बना लेते हैं, उसके आस पास नही रहना चाहते। उसकी बात सुनने से बचते हैं, हाल पूछने पर उम्मीद करते हैं कि जवाब आयेगा- सब ठीक, सब बढ़िया।
राम कहानी दर्द पीड़ा दुख व्यथा की आपको अकेला कर देगी। कान के ढक्कन नही बने पर सामने बैठे हुए लोग, जिसमें अपने भी शामिल हैं, वो अपने मस्तिष्क में दीवार चिन लेते हैं।
यह भी एक प्रक्रिया है, अपने अस्तित्व को आघात से बचाने की, क्योंकि हम किसी भी प्रकार के नकारात्मक प्रभाव को अपने मन- मस्तिष्क तन- काया पर जरा भी छूलाना नही चाहते। हम केवल खुशबू सूंघना चाहते हैं, रोशनी और संपन्नता से जग मग वातावरण में जीना चाहते हैं। इसमें कोई लेशमात्र भी बुराई नही है। छाती पीटकर आदमी कब तक रोने का ढोंग कर सकता है। किसी भी कठिन परिस्थिति से निकलकर अपना भला सोचना हमारी आदत है और ठीक भी है।
बीमारी मौत दुर्घटना आदि के समय लोग सहारा ढूंढने लगते हैं। कुछ को वाकई मिल जाता है, केवल शारीरिक उपस्थिति भी बहुत बड़ा सहारा होता है। संस्था आदि से जुड़े रहने से यह सहयोग आसानी से उपलब्ध होता है। मित्रों पड़ोसियों को हमेशा सहमोग देते रहें, वार्तालाप आदि कभी कभार होता रहे तो आवश्यकता पड़ने पर वो भी आपके साथ खड़े होने का कर्तव्य निभायेंगे। यह मिथ्या है कि हम अकेले सब कुछ कर सकते हैं और हमे किसी की जरूरत नही।
चलो, न भी हो, आप इतने सक्षम हो तो दूसरों की मदद करो।
अफसोस यह है कि बीमारी को समाज के निम्न वर्ग में होने वाली घटना माना जाता है। किसी भी बैनर, मैगज़ीन, बोर्ड, विज्ञापन को देख लें, उसमें आपको अपने जैसे वर्ग का व्यक्ति नही दिखाया जाता। हमारे मस्तिष्क में निम्न वर्ग ही सब बिमारियों और तकलीफ़ का हकदार है। कोई भी बीमारी या परेशानी आपका बैंक बैलैंस या गाड़ी की ब्रांड देखकर दहशत में आकर भाग नही जायेगी।
शारीरिक दर्द के अनेक उपचार हैं और आसानी से असहनीय दर्द ठीक हो जाता है। लम्बे समय से बैठा दर्द एक चुनौती है क्योंकि वो तंत्रिकाओं में पेचिदा बदलाव ला देता है।
दर्द पालना एक शगल है, अक्सर लोग एक आध दर्द पाले रखते हैं ताकि कुछ बात करने का मुद्दा हमेशा तैयार रहे। दीवाली की मिठाई से ज्यादा दर्द दूर करने की दवा स्टोर से खरीदकर खाई जाती है। घरों में टी वी के पास तरह तरह की गोली हमेशा रक्खी मिल जायेगी। आते जाते एक गोली पानी के साथ निगल ली और आगे चल दिये। उस गोली को जरा भी नही पता कि उसे किस काम के लिये निगला गया है।
दर्द न होता तो बेहतरीन गाने न बन पाते। दर्द जरूरी है। अच्छी बात है वो दिखता नही। उसे बुखार की तरह नाप नही सकते। आपको मानना ही पड़ेगा कि दर्द है। आह ऊंह मर गया हाय राम जान निकड रही है बैचेनी है भयंकर दर्द है, जितना ज्यादा दर्द में उच्चारण होगा, उतना ही जल्दी आपकी ओर अगला ध्यान देगा। कराहने की तरह तरह की आवाज़ निकालना जरूरी है वरना संयम और सहनशीलता के चक्कर में आप वंचित रह जायेंगे।
अपने दर्द को छुपायें नही, उसपर ध्यान दें।
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