व्हीलचेयर

palliative care के बारे में लोग नही जानते, डाॅक्टर जन भी कोई खास जिज्ञासा नही रखते। इसे मरने मराने से जोड़ कर देखा जाता है, बस अंतिम संस्कार से जस्ट पहले मुंडी हिलाकर, अब कुछ नही हो सकता है इनको घर ले जायें और इनको तड़पता देखें।
ऐसी हालत में कही से कोई pallative care वाले को पकड़ो, विदेश में ऐसा ही होता है।
बाॅय गाॅड , हम कितने पिछड़े हुए हैं।

  हमारे लोग में बुढापा मौत बहुत बुरी चीज है।

सैड, रिप, अच्छा होता और जी जाते, फलाने की शादी देख लेते, परपोता गोद में खिला लेते, पूरे भारत में बीजेपी देख लेते छाये हुए, अगले साल के ग्रहण देख लेते, सुना है महाभारत के बाद अब वही खगोलीय स्थिति बनेगी।

कमीनों, उनकी ओर देखो, वो बाथरूम तक जाने में पूरी जान लगा देते हैं। पिछले अस्सी नब्बे साल से जी रहे थे, तब यह सब दिखा देते किसने रोका था।
वो दो चम्मच खिचड़ी न हजम कर पाते हैं, उन्हे बख्शो।

सारा लाड़ प्यार दिखाने का बरसों भरपूर मौका रहा, अब चिल्ला चिल्ला कर मत पूछो कि जलेबी खाओ तो ले के आऊँ। बंदे का खुद का शरीर इमरती बन चुका है और इच्छाएं समाप्त हो गई हैं।
ऐसा है कि पोता पोती के पैदा होने में नौ महीने लगेंगे अगर भ्रूण अभी टिक गया। केवल परदादा की गोदी में पोता बिठाने खातिर ये नव विवाहिता जोड़ा ओवरटाईम काम नही कर सकता, उनसे भी एक बार पूछ लो।

   आदमी लम्बी उम्र की कामना करते समय निरोगी काया, शरीर में क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य की अपेक्षा करना भूल जाता है।जीवन के आखिरी दो वर्ष में होने वाले कष्ट को हममे से कोई भी जीते जी समझ नही सकता। 

एक जानकार महिला को इस बात से चिढ़ थी कि उसकी सास एक गिलास पानी मांग लेती थीं या बच्चों से टीवी का रिमोट उठाकर देने को कहती थीं। उसका कहना था कि यह छोटे छोटे काम खुद करने चाहिए।

लोग डरते हैं, अपने बच्चों को बीमारी मौत बुढ़ापे की तकलीफ़ों से दूर रखकर, वो देख भी न लें कि एक समय ऐसा भी आयेगा।इन्ही बच्चों से फिर कर्तव्य पूरा करने की अपेक्षा की जायेगी ।
अनेक तकलीफें हैं जो छोटी छोटी बातों को ध्यान में रखकर उस एक व्यक्ति, जो जीवन के अंतिम चरण में आ पहुंचा हैं , अपने दिन आराम से व्यतीत कर पाये।

  यह निश्चित है कि उसे अपनों का सहारा चाहिए ही होगा और इसके लिये जो कोई भी सहयोग देने को तैयार  हो, सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। उस व्यक्ति को चलने, दिखने, बोलने, सुनने, समझने में परेशानी  होगी और इसको समझकर जल्दीबाजी न करें। 

उसके द्वारा व्यक्त तकलीफ को अनदेखा करके कामचलाऊ उपाय न सुझायें।

यथासंभव प्रयास द्वारा उनके एक एक दिन को सुखी रखने के लिये कोशिश करें। दर्द, सूजन, अनिद्रा, बेचैनी, घबराहट,कब्ज़, उल्टी, अपचन, उदासीनता, डिप्रेशन,और अनेक तकलीफ़ होती हैं और इनको दूर किया जा सकता है।
सबसे बड़ी परेशानी होती है किसी बुजुर्ग को डाॅक्टर के यहाँ लेकर जाने में। अब फैमिली फिजीशियन नही हैं जो नियमित घर जाकर देख लें। ज्यादातर डाॅक्टर लोग ने होम विजिट का प्रावधान नही रखा है और इंसान केवल गूगल के सहारे अपनों का इलाज करने लगता है।

वैसे भी उदासीनता अक्सर दिख जाती है बुजुर्ग की ज़रूरतों पर और लोग इसे जायज़ समझते हैं।
ज़रूरत होने पर भी लोग व्हीलचेयर नही खरीदते,
क्योंकि बाऊजी इसपर कभी नही बैठे अब कैसे बैठ जायेंगे।
इनके बाद क्या होगा उस व्हीलचेयर का।
हम सहारा देकर बाथरूम तक ले जाते हैं, इसलिए जरूरत नही है।
ये तो चौबीसों घंटे बिस्तर पर रहते हैं, दिवार के सहारे से बिठा देते हैं।
असल में घर में जगह नही है।
जिसकी जैसी इच्छा प्रभु। तुम्हारा बाप है वो।

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