अंगदान महा-दान

कौन नही चाहता कि जिंदगी लम्बी हो, पर ऐसा हो नही सकता। लोग पैदा होते हैं, खुशी खुशी जीवन बिताते हैं और अचानक लगता है कि सफर समाप्ति पर आ गया है।

मैं पुनर्जन्म के बारे में ज्यादा नही सोचती, जब इस जन्म का जोड़ा अगले जन्म में कुछ भी बरत नही सकती तो वह एक नये सिरे से शुरुआत ही है ना। पिछले जन्म का जोड़ा हुआ कौन बतायेगा कि अब कहाँ रखा है।

रही बात कर्मों की और कर्म के फल की, अच्छे कर्म करना ही जीवन का ध्येय होना चाहिये, यह बात अलग है।

आज बात होगी बीते हुए को बिसराने की।

हम अतीत से चिपके रहते हैं, पिछला सोचकर व्यथित होने में सुख ढूंढने लगते हैं। दिवंगत के बड़े बड़े फोटो सब दीवारों पर लगा देते हैं।यह न करें, उनको शीघ्रता से मुक्ति दें।
साॅरी,वो बीत गया,अच्छा कल था,उसे याद करो कभी कभी पर अपना वर्तमान और भविष्य बरबाद न करो।

इसमें भी सुपर फास्ट लोग मिल जायेंगे जो व्यथित नही होते और अपनेआप को पोषित करते रहते है, बाकी दुनिया में चाहे जो होता रहे। सबका अपना अपना तरीका है जीवन में संघर्ष करने का और अंततः दुख से उबरने वाले ही दूसरों पर बोझ नही बनते।

आलोचना उनकी होती है जो दुख के सागर में डूबे रहते हैं और उनकी भी जो सूखी मिट्टी में मस्त लोट लगा रहे हैं। लोग आलोचना करना पसंद करते हैं, वो आपके अंदर हीन भावना जगाकर तृप्त होते हैं, उनसे दूर रहें।

एक नजदीकी रिश्तेदार जानना चाहते थे कि फलाने की मृत्यु के बाद कितना इंश्योरेंस का पैसा मिला और कैसे बंटवारा हुआ। अर्थी के साथ चलते लोग आपस में बात करते हैं कि क्या कुछ पीछे छोड़ा है और किसको क्या मिलेगा।
हमारे अंदर की संवेदनाएँ कबकी मर चुकी हैं। लम्बे समय बाद मिलने पर यह बात जरुर उठती है कि कौन कौन मर चुका है। चलो शुक्र है कि हम जिंदा हैं।

आपके घर मौत होगी तो लोग आड़ी तिरछी भाषा में जानना चाहेंगे कि कितना छोड़ गये। उनको मिलना कुछ नही है पर जिज्ञासा रहती है, बतियाने का मुद्दा मिल जाता है।

तो अब आते हैं कि लोग क्या छोड़ कर जाते हैं।

भावनात्मक बात नहीं कि जी उनकी यादें हैं, बहुत खूबसूरत।
कैसे जियेंगे? एक मरा तो अब उनकी याद में लाइफ पार्टनर भी जल्द मरेगा,और फिर अपने को करीब मानने वाले सदमा नही सहन कर पायेंगे और वो भी मरेंगे।
अच्छा, हिसाब बिठाओ कौन कौन साथ जा रहा है शमशान की ओर। सारा सामान थोक में ले आओ, गंगा मोटर कमेटी में कई बाॅडी रखने का इंतजाम करो। एक साथ सब पहुँचेंगे तो ठीक रहेगा।
कमबखत ऑफिस से हर मौत की छुट्टी अलग अलग नही मिलेगी इसलिए एक साथ निपटाओ।

तो जी, शायद ही कोई होगा जो अंतिम सफर पर जाने से पहले अपने कागज पतरे छाँटकर परिवार को बताता हो कि यह इंश्योरेंस के कागज हैं, यह प्रॉपर्टी के और बैंक की पास बुक में फलाने का नाॅमिनेशन है।
वसीयत बहुत दूर की बात है।

अधिकांश लोग मरने के बाद ज्यादा गाली खाते हैं कि कपड़ों का ढेर, बेकार कागजों का पुलिंदा, उधार, लोन, किरायेदार, अनाप शनाप सामान छोड़ कर स्वर्ग प्रस्थान कर गये हैं, काम की बात कोई सुलझा के नही रखी मरने से पहले।

अचानक हुई असमय मृत्यु को छोड़ दें, तो जिनको बिमारियों ने घेरा है, बूढ़े हैं और कभी भी खटिया पर से सुबह हो सकता है न उठें, अपने-आप, उनको कहिये कि अपना सामान संगवा लो तुरंत।

जिसको जो देना है अभी दे दो फिर न कहना कि यह तगडी बडके की बऊ के लिये रखी थी लेकिन बडका अभी नौ साल का ही है। अरे उसकी माँ को देकर छुट्टी पाओ, वो नही पहन कर घूमेगी, उसकी कमर मोटी है।

सच तो यह है कि तुम्हारा जतन से जोड़ा हुआ किसी के काम नही आयेगा। वो तुम्हारे लिये कीमती होगा, अगले को तुम्हारे सत्तर साल पुराने शादी के पलंग का चाव नही है , ना बनारसी साड़ियों का।
अगले दिन उसे कबाड़ी ही ले जायेगा।

कपड़े गहने संदूक सब एक निगाह देखकर कोई भी लेना नही चाहेगा। सोना चाँदी अगर है तो तोल के औने पौने पैसे सबमें बँट जायेंगे।
कुछ माँ बाप अपने बच्चों को बराबर न देकर किसी निराली सोच में एक को ज्यादा देते हैं , यह सोचकर कि इसको ज्यादा ज़रूरत है, दूसरा अच्छा कमा रहा है या उसकी बहू कम लाई थी। वे अपनी सोच को दोनों पक्षों के आगे जीते जी रखने से बचते हैं । मेरे विचार से चोरी छुपे वसीयत या बँटवारा करके अपने बच्चों में मन मुटाव करा देना उचित नही है। सामान आपका है, आप चाहे किसी को भी सारा दे दें, कोई रोक नही सकता, पर कड़वाहट छोड़कर जाना ठीक नहीं।

एक जानकार अपना सबकुछ आधा अमरीका वाले बेटे को और आधा साथ रह रहे बेटे को देना चाहते हैं। दिन रात सेवा करने के लिये साथ में रह रहा बेटा ही है लेकिन मोह कहता है फिफ्टी फिफ्टी।
जाने क्यों दोनों को बिठाकर बात करने से वो बचते हैं और बाहरी व्यक्ति के माध्यम से फैसला लेना चाहते हैं। उपर से पैतृक सम्पत्ति में लड़कियों का कानूनन हक रखकर स्थिति और खराब हो गई है।

प्रशामक सेवा में जब जीवन के अंतिम छोर पर पहुँचे व्यक्ति से कहो कि समेटना चालू करो तो वो सकपका जाते हैं। परिवार को यह समझ नही आता कि एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद आगे क्या करना है, उसके सामान का क्या करें। जायदाद का बँटवारा सबसे बड़ा झगड़े का कारण रहता ही है।

किसी भी उम्र में अपने वजन से ज्यादा सामान इकट्ठा करना बेकार है, जो इस्तेमाल नही कर सकते उसे जीते जी दे दो। जो वस्तु प्रिय है, वो किसे देनी है, सबको बता के रखो अगर अभी नही देना चाहते।
अंगदान करना निजी फैसला है और सबके अंग जरूरी नहीं कि उपयोग के लायक हों। भारत में अंगदान अभी दूर का सपना है।
जब ऐश्वर्या कहतीं हैं कि उन्होंने नेत्रदान का प्रण लिया है, तो यह न समझें कि प्रत्यारोपित व्यक्ति की आँखे ऐश्वर्या जैसी खूबसूरत होंगी।

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